बुधवार, 27 जनवरी 2010

अपनी गुड़िया के मेल का जवाब


Meri Sweet Gudia,

Aaj office me hun, aise rah nahi pa raha hun…..jee chahta hai ki khoob ro lun…magar kahan jakar ro loon…..kahan jaun mai…kayee baar latrine gaya to wahi rona shuru kar diya….aaina ke samne face padta aur khud ko samhalta ki kab tak band rahun latrine me…..baahar nikalta khud ko kaboo me laakar.

Miss u jaan…..kitni baar kahun aur kiss se kahun….ab meri gudia mujhse door ja chuki hai….mann kar raha hun ya to rokar aakash faad dun ya khud ka seena cheed dun jisme meri jaan chhupi hai…..kya karun mai????

Us ooparwale ne bhi sirf dard diya hai mujhe…..agar meri gudia mere paas nahi rahne walee thee to kyon milaya usne mujhse….kyon tadpa tadpa ke jine ko majboor kar raha hai mujhe……kyon banaya ye caste ka barrier jisse mai aaj sirf apni jaan ko yadon me feel kar sakta hun aur khud ko chiggadh marker rote huye dekhta hun….maine apni jaan se waada liya tha ki kabhi khudkushi karne ka khayal bhi mat lana aur mera mann kar raha hi mar jaun mai…..mai kaise jee paaunga mai…kaise rah paaunga mai apnee jaan ke bina….lekin mar bhi nahi paunga….hum dono jo kasam se bandhe hain.

Jaan! Tum aur galati……meri gudia kabhi galati kar hi nahi sakti….wo to mai hun jo jaan bhujhkar apni janu ko daant laga deta hun. Meri gudia kabhi selfish ho sakti hai…..never…jo sacrifice ki murti hai wo kya banegi selfish…..my sweet doll…aise mat likho n ki mera kaleja fat jaay….jaan! tumne kahan tang kiya mujhe…..wo to tera care tha jo mujhe achchhee tarah jine ko kah rahi thee….janu…..Aur jin palon ko tum ‘mera waqt barbaad karna’ kahti ho, un palon me to tumne mujhe sari jahan ki khushiyan dee thee janu…..tumne mera waqt kab barbaad kiya….my sweet life!

Tum bhi mat rona…..tum rowoge to mujhe khud-b-khud rona aayega janu. Tum meri gudia ko mat rulana….bahut hi sweet hai ho….bahut delicate hai….uskee tabiyat bhi kharab ho jayegi. Usko sir-dard hone lagta hai. Aur suno! Usko time pe khana jarur khilana…..wo banki kaam me thik bhi hai lekin khana khane me bahut laaparwaah hai wo….pls meri gudia ka khayal rakhna.

Mai mail karta rahunga jaan……abhi aur nahi likha ja raha…..aankho se sirf aansoo aa rahe hain.

Love u,

Tumhara Janu.

मेरी गुड़िया का पत्र मेरे नाम

Janu mai ja rahi hu per apna khayal rakhna mere janu ko time per khana khilana aur assignment likhwa ker time per hi bej dena aur bahut jyada mat sochana mere baare me .....mai khus rahungi tum bi yaha khus rahna ho sake to muje kam yaad karna ye samaj ker bhulne ki kosis karna ki sayad ek sapna dekha tha tumne aakh khuli aur sab kuch khatam..........aur ha sar me oil bi lagana hai time per aur NET ka date dekhtey rahna is baar tume uski bi tiayari karni hai Feb me MBA ki class bi karni hai aur phir hum dono MBA k saath me exam denge ...aur sayad milenge bhi ...........janu pata nahi bahut kuch likhne baithi thi per kuch bi nahi likh pa rahi hu bas mai itna hi kahungi ki mere saath bitaye huye achhey palo ko yaad karna bas bure ko bhul jana ............maine tume bahut sataya hai bahut tang kiya hai tumara bahut sara time bi barbaad kiya thodi si selfish ho gyai thi mai ho sake to maaf karna hummmmmmmmmmmmaaaaaaaaaaaaa…………………………
love u janu too much forever hummmmmmaaaaaaaaaaaaaaa…………….
sorry jaan agle janam me sirf tumari banker aaungi hummmmmmmaaaaaa love u take care janu pls rona mat bilkul bi janu mai jaate 2 bahut badi-badi  galtiya ker ke ja rahi hu sayad une maaf bi nahi kiya ja sakta so pls ho sake to muj pagal ki galti ko maaf ker dena ye sab maine jaan bujker nahi kiya bas dimaag nahi lagaya kuch bi karne se pahley bas yahi bhool ki maine SORRY SORRY SORRY PLS PARDON ME love u too much hummmmmmmmmmmmmmmaaaaaaa hummmmmmmmmmmaaaaaaaa

एक पत्र अपनी गुड़िया के नाम

मेरी प्यारी गुड़िया,

आज जो कुछ मेरे दिल में हो रहा था उसका कुछ अंश मैं यूं ही लिखता गया....फिर ख्याल आया कि क्यों न हर बात की भांति यह बात भी अपनी गुड़िया से share कर लूं फिर मैंने उसे mail पर copy-paste कर दिया। सबसे पहले ये कि मैं नहीं जानता कि क्या सही है और क्या गलत। दुसरी बात ये कि मैं कुछ लिख/बोलकर अपने गुड़िया के दिल पर बोझ दे रहा हूं या ऐसे ही उसे कुछ सोंचने पर मजबूर कर रहा हूं ये भी नहीं जानता मैं। ...फिर जानता क्या हूं मैं...कुछ नहीं। कुछ नहीं जानता मैं। बस आज सुबह से कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूं वहीं इन पृष्ठों पर उड़ेलने आ गया। ऑफिस से आया और बीयर का वो केन रख दिया फ्रीजर में जो कभी मुझे मेरी गुड़िया ने दिया था। यह सोंचा कि आज मैं पीउंगा उसे...क्योंकि आज मुझे रहा नहीं जा रहा। आज का दिन बड़ा भारी बीत रहा था मेरा। और वैसे भी मेरी गड़िया ने मुझे दिया है पीने के लिए...फिर आज ही क्यों न पी लूं...अपनी जिन्दगी के जिन्दगी का अहम् दिन...तो मैं खामोश बैठा रहूं....ना। कुछ रंग जम जाए...मेरी शाम बिना मेरी गड़िया की मौजूदगी के रंगीन कैसे हो सकती है। क्या इत्तेफाक है कि मसूरी दौरा के दौरान भी बीयर का यह केन नहीं खत्म हुआ...शायद उसे आज साथ देना था मुझे। शायद उस केन को भी यह पता था कि तुरत आने वाले दिनों में कुछ ऐसे पल बीतने वाले है जिसमें उसके योगदान के बिना मेरा लम्हा ही न बीते...फिर वो कैसे खत्म होता पहले...है न? मेरे शाम को रंगीन करने के लिए वो न सही उसका दिया तोहफा सही, वो भी ऐसा तोहफा जिसके बिना महफिल का रंग नहीं चढ़ता...सच में ऊपरवाले ने जान-बूझकर यह संयोग मिलाया...फिर तो आज हो ही जाय...cheersss!!!बार-बार मेरे मनःपटल पर उन दृश्यों का काल्पनिक चित्रण हो रहा था कि अब वहां Ring Ceremony हुआ होगा...अब ये हुआ होगा, अब वो हुआ होगा...और आज का दिन कुछ खास हो गया मेरे लिए। 

मुझे नहीं पता कि आज मैंनें अपनी चपल संवेदना को स्वच्छन्द क्षितिज में उड़ने के लिए क्यों छोड़ दिया है...क्यों इन बेतरतीब उहापोह से भरे सवालों के बवंडर को निमंत्रण दे दिया है मैंने। ...पता नहीं।


बीयर का कैन बगल में आधा भरा (...और आधा खाली) रखा रखा हुआ है। शरीर में जैसे हल्की सी फुनफुनाहट हो रही है, एक गुदगुदी मुझे कभी कभी मेरे गुड़िया का एहसास करा रहा है। ...और मन में प्रश्नों की झड़ी लगी है...क्या ये बीयर का असर है..नहीं। ऐसे छोड़हीन प्रश्न पहले से उठ रहा है...बीयर केन के सील तोड़ने से पहले। पता नहीं क्यों मन में सवाल उठ रहा है, लेकिन मन में सवाल उठ रहा है कि...

क्या अब मैं अपने सबसे गहरे दोस्त (सिर्फ दोस्त कहने पर मेरा दिल मुझे दुत्कार रहा है जिसे मैं जान बूझकर अनसुना कर रहा हूं) पर पहले जैसा हक जता पाऊंगा...? क्या मैं उसे अपने साथ पहले जैसा महसूस कर पाऊंगा...? क्या वो पहले जैसा महसूस कर पाएगी...? पहले/अबतक मैं और मेरी तन्हाई के बीच वो हमेशा रहती थी (...रहती है), क्या आगे भी वो ऐसा रह पाएगी...? उसकी वजह से मैं खुद को कभी अकेला नहीं पाता था...जब चाहो फोन से बात कर लो, जब चाहो कोई सलाह दे दो या ले लो, क्या ऐसा अब भी ऐसा होगा...? बीयर का एक घूंट या शराब का एक पैग लगाने से पहले मैं उससे सलाह और इजाजत लेता था, क्या अब भी मैं वो कर पाऊंगा...? कोई भी तनिक सी गैर-जिम्मेजाराना हरकत करते वक्त मुझे वो याद आती थी कि उसे तो बताऊंगा ही फिर मुझे डांट पड़ेगी; क्या अब भी ऐसा कर पाऊंगा...? ऑफिस में कभी भी मेरे फोन की घंटी बजते ही सारे कलिग कभी मुंह से और कभी इशारे से ये कह देते हैं कि लो तुम्हारी जान का कॉल आया (चाहे वो कॉल किसी का भी हो) और मैं सहमति भरी मुस्कान देकर बाहर निकल जाता था...क्या अब भी ऐसा होगा...? उसके रहते मुझे कभी भी पल भर के लिए ये एहसास ही नहीं हुआ कि कभी उसके बिना भी मुझे जीना पड़ सकता है...जैसे वो मेरे रग-रग में समा चुकी है...मैं कैसे ओवरकम करूंगा ऐसे हालात को...? जब कभी मेरे मुंह से गाली निकलता तो मुझे डांट मिलती कि गाली मेरे मुह से अच्छे नहीं लगते...क्या अब वो सुन पाऊंगा...? मेरी हकलाहट पे वो मुझे टोका करती थी फिर मुझे ट्रेनिंग देने लगती थी, क्या फिर से वो दृश्य आएगा...? दिल की, घर की, परिवार की, दोस्तों की, ऑफिस की, अखबार की, चैनल की, मेस की, खाने-पीने की, उठने-बैठने की,....हर छोटी-बड़ी बात मैं उससे और वो मुझसे कहती थी; जिस दिन ऐसा नहीं होता लगता कि आज कुछ भी अच्छा न हुआ...क्या अब ऐसा हो पाएगा...? कभी कभी जब एक दिन हम बात नहीं कर पाते थे तो लगता था जैसे बिना बात किए हमने सदी गुजार दी, अब क्या होगा...? मैं अपनी गुड़िया की डांट के बिना बाल में तेल नहीं लगाता, कभी स्क्रब नहीं करता,...अब कर पाऊंगा मैं?...कहां से लाऊंगा मैं अपने गुड़िया जैसा दिल जो मेरी Caring करे...कैसे संभाल पाऊंगा मैं खुद को जो इस केयरिंग बुत की वजह से और लापहवाह बन चुका है...

पता नहीं कि ये सब होगा या नहीं...और अगर होगा तो कैसे होगा...कब तक होगा...? अगर होगा तो उसके नए दाम्पत्य जीवन के लिए वो सही होगा या गलत होगा...? (यदि कुछ भी उसके दाम्पत्य जीवन के लिए गलत होगा वो मैं करना तो क्या, सुनना सहन नहीं कर पाऊंगा...क्योंकि मैं अपनी गुड़िया के आंखों में आंसू और होंठों पे रोना नहीं देख सकता)...और अगर नहीं होगा तो वो और मैं खुद और हालात को मैनेज कैसे कर पाऊंगा...?


पता नहीं कि मेरा अंतःकरण, सामाजिक तंत्र या नैतिकता भी मुझसे कभी सवाल करेगी?...और करेगी तो क्या सवाल करेगी? क्या अच्छा है और क्या गलत ये तो मैं न कल जानता था और न ही आज जानता हूं। 

कभी कभी किसी फिल्म के उस दृश्य को याद करता हूं जिसमें हालात से मजबूर नायक-नायिका एक दुसरे अलग हो जाते हैं और नायिका की शादी अन्यत्र हो जाती है तो संवेदना पर चोट करने वाली एक पंक्ति याद आती है-

वो अफ़साना जिसे अंज़ाम तक लाना न हो मुमकिन,

उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा...

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों....

लेकिन मेरी गहरी यादाश्त और और अपने अभिन्न से बिछुड़ने की कल्पना मात्र से प्रतिबिम्बित विरह-वेदना से व्यथित बरबस व्याकुल हृदय मुझे इन मर्मस्पर्शी प्रश्नों का सामना करने की इजाजत ही कहां दे रही है।


आज बहुत मन कर रहा है कि किसी से गले मिलकर खूब रोऊं, दिल खोलकर किसी से बात खूब करूं...लेकिन किससे करूं...दिल की बात तो उसी से की जाती है न जो मुझे पहचाने, मेरे दिल की धड़कन समझे...फिर किससे बात करूं। अपनी अनु के अलावा बहुत कुछ अंतरंग बात रानी से करता हूं लेकिन उससे भी अभी क्या बात करूं...कि मेरी बहन देखो आज मैं अकेला हो गया...मेरी सबसे अच्छी दोस्त बिना छिने मुझसे छिन गया...या क्या कहूं उसे भी। जो ये सब समझने वाली है वो तो आज व्यस्त है कहीं फिर मैं क्या करूं...अकेले में बस रोते हुए नहीं रहा गया मुझसे तो आ गया खुद से बात करने के लिए...आत्मकथा का एक पृष्ठ लिखने के लिए। कितनी बार शायरी में या लोगों के मुह से सुन चुका हूं लेकिन ऐसा महसूस नहीं किया था कि सच में ऐसा होता है...सच में कभी लगता है कि मेरा दिल सूना हो गया, आज उस मेघ के बदले मैं चिग्घाड़ मारू और अपने अश्रु-निधि को बारिस की जगह उड़ेल दूं, सच में ऐसा भी कभी लगता है कि हृदय फट गया और बेजान सा शरीर खुद के लिए सहारा का बाट जोह रहा हो, निस्तेज होता मन ऊर्जाविहनी तन के साथ एक पल को सदी की तरह गुजार रहा हो...और पता नहीं कुछ ऐसा एहसास जो वर्णन नहीं किया जा सकता...कम से कम मैं वर्णन करने में अक्षम हूं। अभी लग रहा है जैसे मुझे बुखार है या ऐसे ही कुछ हो गया है...अच्छी तरह चल पाने पाले के लिए कहीं ऊर्जा बटोर कर लाता हूं।


कई दृश्य आ रहा है मेरे स्मृति-पटल पर--

जब देखो हंसते हुए...कभी भी मैं उसे याद करता हूं तो उसकी वही छवि स्मरण में ऊधम मचाने लगती है...मुस्कुराती हुई, खिलखिलाती हुई। धन्य है ये आज का टेक्नोलॉजी कि जब चाहो, देख लो तस्वीर...फूल सी खिलती मुस्कानों वाली अपने गुड़िया की। अब याद आ रहा है कि मैं अपनी गुड़िया को डांट रहा हूं कि हें..ये है खड़ा होने का ढ़ंग..दूंगा तमाचा..ठीक से खड़ी हो, जैसे लगता ही नहीं कि खाती भी है, शरीर में जैसे ताकत नहीं। फिर वो हंस देती और मुंह फैला के हांंंं करती, फिर मैं गुर्रा के देखता कि ठीक से मुह से रखती है कि नहीं, फोटो लेना है मुझे। कई बार बेवजह डांट देना...हमेशा इस तरह हक जताना कि वो......वो 'मैं'ही हूं। एक दिन नहीं...कइयों दिन ये देख चुका हूं यदि किसी घटना पर चाहत की परख करूं तो हर बार वो मुझसे आगे निकल जाती थी...मसलन एक दुसरे ख्याल रखना, एक दुसरे की बातें और कहीं बातें याद रखना, एक दुसरे का केयरिंग करना, मिलने या फोन करने पर punchuality दिखाना, एक दुसरे की पसंद का ख्याल रखना...हर चीज में मैं उसके आगे कहीं नहीं थमता था...She always exceeded me. लेकिन फिर भी तारीफ तो मेरी ही होनी चाहिए...आखिर वही ऐसा थी (है) जिसे मैं अपनी 'जिन्दगी' कहता हूं--

ये माना मेरी जां कि तुम इक वो हसीं ख्वाब हो,

हमारी निगाहों की भी कुछ तो मगर दाद दो,

बहारों को भी नाज जिस फूल पर है-

वही फूल हमनें चुना गुलसितां से।

इशारों इशारों में दिल लेनेवाले...

बता ये हुनर तूने सीखा कहां से।

हूं न मैं काबिल-ए-तारीफ़। जी हां...इतरा भी तो मैं ही सकता हूं कि आखिर कि अपने पास भी कुछ खास है...ऐसा जिसपर मैं जिन्दगी भर नाज करूंगा।


एक गाना याद आ रहा है--

वक्त से दिन और रात, वक्त से कल और आज।

वक्त का हर शै गुलाम, वक्त का हर शै पे राज।।

वक्त की पाबंद की आती-जाती रौनकें

वक्त है फूलों की सेज, वक्त है कांटों का ताज।

आदमी को चाहिए वक्त से डरकर रहें

न जाने किस मोड़पे वक्त का बदले मिजाज़।

...मैं भी वक्त के आइने में कल की तस्वीर देखने का इंतजार कर रहा हूं कि वो मेरे लिए क्या सौगात लाने की तैयारी कर रखा है...मुझे कैसे हालात परोसने को तैयार है वो...



अपनी गुड़िया का--

Janu.